Wednesday 16 July 2014

3-अक्षय तृतीया



अक्षय तृतीया

 

अक्षय तृतीया (अखातीज) को अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक माना जाता है। वैसे तो बारह महीनों के शुक्ल पक्ष की तृतीया शुभ मानी जाती है लेकिन वैशाख माह की तिथि अति स्वयंसिद्ध मुहूर्तों में मानी गई है। माना जाता है कि इस शुभ दिन जिनका परिणय-संस्कार होता है उनका सौभाग्य अखंड रहता है।
इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नाता के लिए भी विशेष अनुष्ठान होता है जिससे अक्षय पुण्य मिलता है। इस दिन को धर्मशास्त्रों में शुभ फलदायक माना गया है और इसलिए इस दिन बिना पंचांग देखे कोई भी शुभ कार्य आरंभ किया जा सकता है। इस दिन को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना है।
यह दिन सिर्फ परिणय मुहूर्त के लिहाज से ही ठीक नहीं है बल्कि समस्त शुभ कार्यों जिमें स्वर्ण और आभूषण खरीदने, गृह प्रवेश, पद भार ग्रहण, वाहन खरीदी, भूमि पूजतन और किसी नए व्यापार की शुरुआत के लिए भी इसे बिलकुल उपयुक्त अवसर माना गया है।
क्यों हैं अक्षय तृतीया का महत्व 

हमारे धर्म धर्मशास्त्रों में अक्षय तृतीया एक प्रमुख अवसर के रूप में प्रतिष्ठित है। भविष्य पुराण के अनुसार इसी दिन सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। विष्णु के अवतार भगवान परशुराम, नर-नारायण और हयग्रीव तीनों इसी दिन धरा पर अवतरित हुए। हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ बद्रीनारायण के पट भी अक्षय तृतीया को ही खुलते हैं। इस तिथि के महत्ता के कारण ही आज भी वृंदावन के बांके बिहारी के मंदिर में विग्रह के श्री चरण दर्शन केवल इस शुभ दिन को ही हो पाते हैं, शेष दिन वे पूरे वाों से ढके रहते हैं।
साढ़े तीन शुभ मुहूर्त
पूरे वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त माने जाते हैं उनमें अक्षय तृतीया को प्रमुख स्थान दिया गया है। ये मुहूर्त हैं चैत्र शुक्ल गुड़ी पड़वा, वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया, आश्विन शुक्ल विजयादशमी तथा दीपावली की पड़वा का आधा दिन। इन साढ़े तीन तिथियों को शुभ फलदायक माना जाता है।
अक्षय तृतीया पर क्या करें
अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने से मनोकामना पूर्ण होती है। नैवेद्य में जौ या गेहूं या सत्तू, ककडी और चने की दाल अर्पित की जाती है। तत्पश्चात फल, फूल, बर्तान तथा वस्त्र आदि दान कर दक्षिणा देने की मान्यता है। इस दिन ग्रीष्म का प्रारंभ माना जाता है इसलिए इस दिन जल से भरे घड़े, कुल्हड़, सकोरे, पंखे, खड़ाऊं, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककडी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गर्मी के मौसम में लाभ देने वाली वस्तुओं का दान किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद अथवा पीले गुलाब से करना चाहिए।
जैन धर्म में भी पूजनीय 

जैन धर्मावलम्बियों के लिए भी अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान ने एक वर्ष की तपस्ता पूर्ण करने के पश्चात इक्षु (गन्नो) रस से पारायण किया था। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने एवं अपने कर्म बंधनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक व पारिवारिक सुखों को का त्यागते हुए जैन वैराग्य अंगीकार किया था। सत्य और अहिंसा का प्रचार करते हुए प्रभु हस्तिनापुर गजपुर पधारे जहां उनके पौत्र सोमयश का शासन था।
प्रभु का आगमन सुनकर संपूर्ण नगर दर्शनार्थ उमड़ पड़ा। सोमयश के पुत्र राजकुमार श्रेयांस कुमार ने प्रभु को देखकर पहचान लिया और तत्काल शुद्ध आहार के रूप में प्रभु को गन्नो का रस दिया, जिससे आदिनाथ ने व्रत का पारायण किया। जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि गन्नो के रस को इक्षुरस भी कहते हैं, इसी कारण यह दिन इक्षु तृतीया एवं अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाने लगा।

No comments:

Post a Comment